रविवार, 8 मार्च 2015

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2015 पर एक प्रश्न : हम कब आरक्षण मुक्त होंगे?

आज ८ मार्च 'महिला दिवस' पर हमे कितनी बधाइयां मिलती हैं तथा हम सशक्त कहला रहे हैं. हम सुनकर बडे खुश हो जाते हैं कि वाह! हम भी बराबर हो गए. सरकार ने हमारे लिए कितनी सारी योजनाएं बनाकर हमें आरक्षण प्रदान कर रही है. जैसे: कन्यादान योजना, लाड़ली योजना,  मुफ्त शिक्षा एवं कई तरह की छुट आदि आदि।  ऐसा लगता है जैसे हम सरकारी बुढ़िया की तरह सरकारी बेटी हैं. हम माँ बाप की बेटी नहीं, जन्म से मरण तक हमारी जिम्मेदारी सरकार की हो गयी है. मेरे माँ -बाप ने जैसे हमे सरकारी योजना के लिए किराए पर कोख लिया है कि वह केवल जन्म दे. बाकी हमारे भरण पोषण से लेकर पढाई लिखाई, यहां तक की विवाह भी सरकार के जिम्मे। यह कितना बड़ा थप्पड़ हमारी बेटियों तथा महिलाओं पर है. उनकी बराबरी के अधिकारों की बात कोई नहीं करता कि उसके माँ-बाप भरण -पोषण तथा शिक्षा का उचित  इंतज़ाम क्यों नही कर रहे हैं? यदि वे आर्थिक रूप से कमजोर और असहाय हैं तो यह बेटे पर भी लागू होती है. फिर सरकार ने वरदान और लाड़ला योजना आदि क्यों नहीं बनाये? क्यों नही पूछते कि बेटियों के हस्ताक्षर के बिना चल-अचल संपत्ति की खरीद - बिक्री क्यों बंद नहीं हो रही है? क्यों नहीं पूछते कि बेटियों को अपने मायके की सम्पति से अपना हिस्सा लेने के लिए कोर्ट कचहरी ही एकमात्र उपाय क्यों बताया जाता है? जिसका न उसे ज्ञान है न सामर्थ्य की वह वकील को फीस और मुकदमे के खर्चे दे सके. सरकार और समाज ने उसके पास क्या संसाधन छोड़ रखे हैं जिससे वह मुकदमे का खर्च उठाए? तिसपर कोर्ट - कचहरी  का लंबे समय तक चलनेवाला चक्कर। यदि सरकार ऐसा नहीं करती तो उसे यह सब नौटंकी बंद कर देनी चाहिए और महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने और उन्हें आरक्षण मुक्त करते हुए सीधे सपाट तरीके से बेटों की भाँति संपत्ति पर उनके अधिकारों को सुनिश्चित करें।  
-- सरिता कुमारी 

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