शनिवार, 18 जनवरी 2014

यह पद - यात्रा है या छल - यात्रा ?

15 जनवरी 2014  के प्रभात खबर के रांची नगर संस्करण के पेज 11 http://epaper.prabhatkhabar.com/c/2225496 में लखनऊ से एक खबर छपी है "अपने हक़ के लिए महिला किसान करेंगी पदयात्रा"ऐसा लगता है कि जो खबर में छपा है वह महिलाओं के साथ छल की तरह है और अधकचरी सोच का नतीजा है। इस कारण से उत्तर प्रदेश में होने वाली इस महिला किसान पदयात्रा का विरोध होना चाहिए। इसे समर्थन तो कत्तई नहीं मिलना चाहिए क्योंकि यह महिलाओं के जन्म सिध्ह अधिकारों के हनन की बात कर रहा है अगर ध्यान से इसमे बताये गए पांच सूत्री मांगो को देखें तो इससे तो हमारे अस्तित्व एवं पहचान के मिट जाने का ही ख़तरा है इसमे यह मांग रखी गयी है कि "जोत जमीन में पट्टे के साथ पत्नी का नाम भी सह खातेदार के रूप में दर्ज़ करने, पट्टे द्वारा पत्नी को पैतृक जोत ज़मीन हस्तानांतरण करने पर स्टाम्प शुल्क माफ़ करने" आदि जितनी बातें रखी  गयी है वह सिर्फ पुरुष वर्ग के ही वर्चस्व स्थापित करने और कायम रखने के इरादे से कही गयी है, यानि पति के साथ पत्नी का नाम जुड़ा हो तभी उसे सरकारी और गैर सरकारी सभी तरह के लाभ प्राप्त होंगे। अर्थात महिलाओं की  अपनी पहचान या अस्तित्व का कोई महत्व नहीं है यह स्त्रियों के साथ बिलकुल धोखाघड़ी तथा अन्याय है। सबसे पहले तो इसमे खोट यह है कि सिर्फ जोत वाली ज़मीन में ही - पत्नी की साझेदारी की बात कही गयी है, गैर जोत वाली ज़मीन में क्यों नहीं?

यदि नियत बराबरी का हक़ दिलवाने की होती तो हिन्दू-उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में महिलाओं को 'भाई बहनों को जो  पैतृक सम्पति में बराबर का अधिकार मिला है; उसका जिक्र अवश्य होता।' भाई के साथ बहन को पैतृक संपत्ति में हक़ तथा नाम एवं 'पत्नी के साथ का पत्ति का नाम' उसकी पत्नी के पैतृक संपत्ति के सह खाते में होने से 'लाभ' की बात कही होती। 

इससे साफ़ ज़ाहिर है कि बहनों  तथा बेटियों के अस्तित्व एवं पहचान मिटाने की बात कर रहे हैं ताकि भाई 'दूसरे के घर से आयी बीबी' के नाम सारी पैतृक सम्पति को कर दे एवं बहनों के अस्तित्व एवं पहचान उनके माता -पिता की सम्पति से बेदखल कर मियाँ- बीबी चैन कि जिंदगी व्यतीत करें। यह पदयात्रा कहीं 'छल यात्रा' तो नहीं?      

अतः भाई बहनों से अनुरोध है कि ऐसी 'पदयात्रा' का वहिष्कार करें तथा अपने माता-पिता के संपत्ति में  हिन्दू-उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के द्वारा जो हक़ मिले हैं, उसे आसानी से तथा भाइयों कि तरह सरल तरीके से बहनों के नाम हस्तांतरण की बात करें, तभी उस पर विचार करें। अन्यथा यह पुरुष समाज हमें सदियों से ही छलते आया है, आज भी इसे अपने अधीन तथा कब्जे में रखने कि बात को तुल दे रहा है

अतः आप सभी जागरूक हों और ऐसी गलत -फहमी में न  पडें। सदा बराबरी की बात पर अड़ें; क्योंकि "जननी-जन्मभूमि " सिर्फ पुरुषों के लिए नहीं बल्कि हमारे लिए भी उतना ही 'महान' है. इसलिए हम सभी संकल्प लें कि सदियों से 'विस्थापन ' की जिंदगी जैसी कोढ़ को जड़ से उखाड़ फेंकें और अपने अस्तित्व एवं अपनी पहचान को कायम रखें।

सरिता कुमारी
A-100, सेल सॅटॅलाइट टाउनशिप,
रांची -834004 
M :9835152680