शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

संतान जनें, बेटा-बेटी नहीं !

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संतान जनें, बेटा-बेटी नहीं !
26 जनवरी 2014  के प्रभात खबर के रांची नगर संस्करण के पेज 11 में नई दिल्ली से ‘माताओं ने बेटी के लिए बदली परम्परा' शीर्षक से एक खबर छपी है। धन्य हैं देहरादून कि वे माताएँ, जिन्होंने बेटियों के मान-सम्मान को बढ़ावा दिया तथा उनके लिए दीर्घायु होने की  मन्नत माँगी! वैसी माताओं के लिए मैं भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि ईश्वर उन माताओं को दीर्घायु तथा धन एवं परिवार से परिपूर्ण रखें! जिन्होंने ऐसे नेक काम किये और समाज को समानता का मार्ग-दर्शन दिया।
इनके कामों तथा विचारों को समाज में पुरजोर तरीके से प्रचार-प्रसार करने की जरुरत है ताकि इनसे प्रेरित होकर हमारे देश एवं विश्व की सभी महिलाएँ इनका अनुसरण करते हुए इस बात का संकल्प लें कि हम 'बेटा-बेटी' नहीं, बल्कि अपनी संतान को जन्म दें और उसे सभी अच्छे गुणों से संवार कर एक ऐसे नागरिक बनाये जो सभी सदगुणों व उत्तम विचारों से परिपूर्ण हों. अन्यथा हम मातृत्व के योग्य नहीं हैं।  तो इस प्रकार के संकल्प से समाज में हो रहे सभी प्रकार के अत्याचार, भ्रष्टाचार, कुकर्म, कुप्रथा आदि  दुर्गुणों एवं परिस्थितियों  से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जायेगी तथा इन शब्दों  पर आधारित संस्कारों का समाज के शब्दकोश से हमेशा के लिए सफाया हो जाएगा।
अतः संपूर्ण जगत की जननियों (कम-से-कम समस्त भारत) से अनुरोध है कि देहरादून की माताओं के सम्मान में हम श्रद्धा-सुमन रूपी इस संकल्प को अर्पित करें। क्योंकि सभी अत्याचारी, भ्रष्टाचारी, चोर, डकैत, कुकर्मी, बलात्कारी अवश्य ही किसी-न-किसी माँ की कोख से ही उत्पन्न हुए हैं अर्थात उनके भरण-पोषण अथवा संस्कार देने में ऐसे कुकर्मी की माताएँ ही जिम्मेदार हैं. कहीं-न-कहीं उनमें कमी अवश्य ही रही है जिसकी वजह से इस तरह के लोग आज अपने दुराचारों से समाज में विपत्ति फैलाये हुए हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए अच्छे समाज की स्थापना का बीड़ा हम सभी माताएँ ही उठायें कि जब भी हम जन्म दें तो एक अच्छे विचार वाले बच्चे को ही जन्म दें और उसे संवारें ताकि यह जगत स्वर्ग बन जाए।
जय जननी! जय भारत!! जय विश्व!!! 
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सरिता कुमारी