बुधवार, 25 जून 2014

यदि बेटी मारी गयी तो मायके वालों की खैर नहीं !


रांची के DIG के माध्यम से प्रभात खबर के 25 जून 2014 के रांची अंक के पेज संख्या 8 में एक अहम फैसला/ आदेश छपा "यदि ह्त्या हुई तो थानेदारों की खैर नहीं !" जो स्वागत योग्य है. इससे आम लोगों के मन में एक विश्वास अवश्य उत्पन्न हुआ है कि सभी पुलिस वाले शायद अपनी जिम्मेदारी अवश्य निभाएंगे जिससे कि ह्त्या न के बराबर होगी और जनता निर्भयता के साथ जीवन जी सकेगी।

इसी प्रकार से बेटियों की सुरक्षा हेतु झारखण्ड के DGP महोदय से एक फरमान सख्ती से जारी करने का मै आग्रह करती हूँ कि "यदि बेटी मारी गयी तो मायके वालों की खैर नहीं !" क्योंकि अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पाने के लिए प्रायः मायके वाले ससुराल वालों पर दहेज़ रूपी हथकंडा थोप देते हैं। यानि जब कोई बेटी मारी जाती है तो यही खबर छपता है कि "दहेज़ की खातिर एक और बेटी मारी गयी." क्या सचमुच ऐसा होता है? यदि यह सच होता तो बेटी के मरने से पहले मायके वाले क्या करते रहते हैं?  अपनी बेटी की सुरक्षा हेतु उसके जीवित रहते FIR क्यों नहीं करते या कोई अन्य सामाजिक-कानूनी कदम क्यों नहीं उठाते? उसको बेटे की तरह अपने यहां आश्रय एवं सुरक्षा क्यों नहीं देते? क्यों जब  ससुराल से ऊबकर वह मायके आती है तो उसे दुबारा डरा धमका कर तथा गाली गलौज करके उसे उलटे पाँव वापिस भेज दिया जाता है? तब वह  जाकर आत्म ह्त्या करने पर विवश हो जाती है। तब मायके वाले अपने बचाव के लिए दहेज़ का अच्छा बहाना ढूंढ लेते हैं तथा तब वे केस मुक़दमे की कार्रवाई में जाते हैं।

अतः DGP महोदय से अनुरोध करते हैं कि कुछ कठोर नियम बनाएं और मायके वालों पर वे अवश्य लगाम कसें कि अगर कोई बेटी मरती है तो पहले उसके मायकेवाले को गिरफ्तार करें, बाद में ससुराल वालों को। तब समाज और प्रशासन को यह दिखेगा कि एक भी 'बेचारी' बेटी नहीं मारी जाएंगी क्योंकि तब सबको अपनी सुरक्षा की पड़ेगी तभी उनकी आँख खुलेगी की बेटी को बोझ समझकर उसे गलत जगह विवाह कराने तथा अपनी जिम्मेदारियों से मुकरने का क्या नतीजा होगा। साथ ही दृढ़ता से इसका अनुपालन करने कराने वाले पुलिस कर्मियों को पुरस्कृत करने की घोषणा भी अगर DGP महोदय करें तो बेटी और महिलायें ज्यादा सुरक्षित हो सकेंगी। 

इसे सही साबित करने के लिए इस विषय पर सर्वे कराकर या गंभीर अध्ययन के माध्यम से इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि बेटियां अपने मायके में ज्यादा प्रताड़ित होती है खासकर क्वांरी बेटी। उसके माँ बाप भाई आदि सभी  दुश्मन की तरह व्यवहार करते हैं लेकिन सजा का कोई प्रावधान न होने की वजह से वे बचते चले जाते हैं। बेटी अगर ऊबकर क्वांरी मरती है तो उसे प्रेम प्रसंग बताकर, ससुराल में मरती है तो दहेज़ के लिए कहकर क़ानून से भी बच निकलते हैं। जब बेटी मायके में प्रताड़ित होती है तो उसे एक आशा रहती है कि जाने दें हम  ससुराल चले जाएंगे तो हम सुरक्षित हो जाएंगे किन्तु जब माँ बाप भाई आदि के करतूत से उसे ससुराल भी ढंग का नहीं मिलता तो विवश होकर उसे आत्महत्या की दहलीज तक पहुँचने को मजबूर होना पड़ता है। तब मायके वालों की चांदी - अब फसे ससुराल वाले, उन्हें तो बेटी के हिस्से की सम्पति भी बैठे बिठाए हाथ लग गयी। सबूत के तौर पर आप देखेंगे कि जागरूक माँ बाप की बेटियां कभी नहीं मारी जातीं क्योंकि वे अपनी बेटी को आदमी समझते है तथा उनकी सुरक्षा का हमेशा ख़याल रखते हैं। हमारे विचार से तो आज तक "दहेज़ के लिए मारी गयी बेटियो" के जितने भी केस हैं उन सबको अच्छी तरह छानबीन किया जाए तो 99 प्रतिशत यह सच साबित होगा। मुझे आशा है कि पुलिस विभाग इस विषय पर एक कदम आगे बढ़कर बेटियों के प्रति हमदर्दी दिखाते हुए उन्हें एक सुरक्षित जीवन के प्रति आश्वस्त करेगी।