मंगलवार, 7 जुलाई 2015

Double Speak Principals honoured

शिक्षा जगत, प्रशासन एवं मीडिया समाज के तीन प्रमुख अंग हैं। प्रभात खबर द्वारा मेधावी छात्रों को सम्मानित करने के लिए आयोजित  "प्रतिभा सम्मान समारोह" सचमुच काबिले तारीफ़ है।  यह एक अतुलनीय प्रयास है जिसकी जितनी भी सराहना की जाए कम होगी। उन्होने  इस एक कदम से "जौहरी जाने हीरे का मोल" को चरितार्थ  किया है और समाज के बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा स्रोत का काम किया है। 

लेकिन वहीँ हमारे समाज के सर्वोपरि अंग यानि शिक्षा जगत के प्राचार्य आज सम्मान लेते हुए ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे एक माता अवैध संतान जनने के बाद उसे कूड़ादान में फेंक देती है तथा कोई भले मानस उसे ह्रदय से लगाकर उसे एक योग्य व्यक्ति बनाते हैं तो पुनः उस पर अपना दावा करने वह माता चली आती है। 

इन सम्मानित प्राचार्यों से पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने अपने इन मेधावियों के लिए क्या किया जब १० वीं कक्षा के ऐसे सम्मानित विद्यार्थी अपने ही स्कूलों में प्रवेश पाने में रिजेक्ट हो गए और इस तरह असम्मानित और अपमानित भी हुए। इसका साफ़ मतलब है कि सीबीएसई विद्यालयों में चल रही अंदरुनी परीक्षाओं के मूल्यांकन के तौर तरीके गलत हैं क्यूंकि वही विद्यालय उन्ही छात्रों के अगली कक्षा में प्रवेश को वर्जित करता है। मतलब साफ़ है कि ऐसे विद्यार्थी अगर प्रतिभा सम्मान समारोह में सम्मान पाने के अधिकारी थे तो अपने ही स्कूल में प्रवेश के लिए योग्य भी। या फिर वह अगर अपने स्कूल में पढ़ने योग्य नहीं थे तो उन्हें सम्मानित करना भी गलत है। तथ्य यह भी है कि दोनों ही हालातों में ऐसे विद्यालय  के प्राचार्य भी सम्मान के अधिकारी नहीं थे। अगर प्रभात खबर न्याय और व्यवस्था में विश्वास जगाने के लिए  कटिबध्द है तो ऐसे प्राचार्यों से सम्मान का कोई भी दिया हुआ प्रतीक वापस ले लेना चाहिए। 

इन सम्मानित प्राचार्यों से यह भी पूछा जाना चाहिए कि प्रेस में तो इनके वक्तव्य में यह होता है कि विद्यार्थियों को अपनी इच्छानुसार विषयों का चुनाव करना चाहिए। लेकिन ऐसे प्राचार्य अपने ही विद्यार्थियों पर प्रवेश के समय CGPA 10 होने के बावजूद विषय संयोजन बदलने के लिए पूरी तरह से दबाव डालते हैं यहां तक कि विज्ञानं में रूचि रखने वाले छात्र को कॉमर्स जैसे विषय पकड़ाए गए। ऐसी दोमुंही बातें करनेवाले प्राचार्य क्या सम्मान के योग्य हो सकते हैं?   

एक बात और कि रिजल्ट प्रकाशित होने पर आप ही का समाचार पत्र एक ही विद्यार्थी के नाम को स्कूल के लिस्ट में भी दर्शाता है और फिर जितने कोचिंग संस्थाओं से विद्यार्थी सम्बंधित रहा है उसकी लिस्ट में भी उस विद्यार्थी को प्रेरणास्रोत बताया जाता है पर आप के कल के "प्रतिभा सम्मान समारोह" में इन कोचिंग संस्थानों के नाम नहीं थे।  मेरा अनुरोध है कि आप इन कोचिंग संस्थाओं को सम्मानित करने पर पुनः विचार करें क्यूंकि रांची के कुछ नामी गिरामी विद्यालय ने अपने 10+2 के कुछ सेक्शन को इन कोचिंग संस्थानों को ठेके पर दिया है ताकि अच्छे परिणाम इन कोचिंग संस्थानों की कृपा से हो और सम्मानित होगा स्कूल और उसके प्राचार्य।     
-- सरिता कुमारी

रविवार, 8 मार्च 2015

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2015 पर एक प्रश्न : हम कब आरक्षण मुक्त होंगे?

आज ८ मार्च 'महिला दिवस' पर हमे कितनी बधाइयां मिलती हैं तथा हम सशक्त कहला रहे हैं. हम सुनकर बडे खुश हो जाते हैं कि वाह! हम भी बराबर हो गए. सरकार ने हमारे लिए कितनी सारी योजनाएं बनाकर हमें आरक्षण प्रदान कर रही है. जैसे: कन्यादान योजना, लाड़ली योजना,  मुफ्त शिक्षा एवं कई तरह की छुट आदि आदि।  ऐसा लगता है जैसे हम सरकारी बुढ़िया की तरह सरकारी बेटी हैं. हम माँ बाप की बेटी नहीं, जन्म से मरण तक हमारी जिम्मेदारी सरकार की हो गयी है. मेरे माँ -बाप ने जैसे हमे सरकारी योजना के लिए किराए पर कोख लिया है कि वह केवल जन्म दे. बाकी हमारे भरण पोषण से लेकर पढाई लिखाई, यहां तक की विवाह भी सरकार के जिम्मे। यह कितना बड़ा थप्पड़ हमारी बेटियों तथा महिलाओं पर है. उनकी बराबरी के अधिकारों की बात कोई नहीं करता कि उसके माँ-बाप भरण -पोषण तथा शिक्षा का उचित  इंतज़ाम क्यों नही कर रहे हैं? यदि वे आर्थिक रूप से कमजोर और असहाय हैं तो यह बेटे पर भी लागू होती है. फिर सरकार ने वरदान और लाड़ला योजना आदि क्यों नहीं बनाये? क्यों नही पूछते कि बेटियों के हस्ताक्षर के बिना चल-अचल संपत्ति की खरीद - बिक्री क्यों बंद नहीं हो रही है? क्यों नहीं पूछते कि बेटियों को अपने मायके की सम्पति से अपना हिस्सा लेने के लिए कोर्ट कचहरी ही एकमात्र उपाय क्यों बताया जाता है? जिसका न उसे ज्ञान है न सामर्थ्य की वह वकील को फीस और मुकदमे के खर्चे दे सके. सरकार और समाज ने उसके पास क्या संसाधन छोड़ रखे हैं जिससे वह मुकदमे का खर्च उठाए? तिसपर कोर्ट - कचहरी  का लंबे समय तक चलनेवाला चक्कर। यदि सरकार ऐसा नहीं करती तो उसे यह सब नौटंकी बंद कर देनी चाहिए और महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने और उन्हें आरक्षण मुक्त करते हुए सीधे सपाट तरीके से बेटों की भाँति संपत्ति पर उनके अधिकारों को सुनिश्चित करें।  
-- सरिता कुमारी 

सोमवार, 19 जनवरी 2015

धर्मगुरुओं की अज्ञानता और कुतर्क पर प्रश्न चिन्ह

This is a comment on the newspaper report published in 

आज जब हर संसाधन में कमी हो रही है, प्रकृति के अतिदोहन के कारण पर्यावरण और पारिस्थितिकी असंतुलित हो चुकी है, जल की कमी से मानव जीवन पर अतिगंभीर संकट की स्थिति सामने है ऐसे समय में बदरीआश्रम के शंकराचार्य बासुदेवानन्द सरस्वती जी का आबादी में  निरंतर और उच्चे दर पर वृद्धि का दस दस बच्चे पैदा करने का का सुझाव समाज में कितनी तबाही मचा सकती है यह सिर्फ कल्पना करने की बात नही रही. इसका नतीजा सिर्फ भुखमरी, मारकाट, कुव्यवस्था, अज्ञान में वृद्धि और पूणर्रूप से महिलाओं के विरुद्ध है. बदरीआश्रम के शंकराचार्य का यह सन्देश एक खाली दिमाग की उपज ही हो सकती है. यह और भी आश्चर्यजनक है कि वे ऐसी बयानबाज़ी एक व्यक्तिविशेष को भारत का प्रधानमंत्री बनाए रखने के लिए  कर रहे हैं. प्रथम वाक्य से लेकर अंतिम पूर्णविराम तक यह कुतर्को और नासमझी भरा पड़ा है. आशा है प्रधानमंत्री सहित कोई भी राजनितिक नेता शंकराचार्य महोदय का यह आग्रह और सुझाव पूरी तरह से ख़ारिज करनेवाला बयान देगा जो आर्थिक संकट और असंतुलन को बढ़ाने के अलावा महिलाओ के शरीर और स्वास्थय से खिलवाड़ करने के लिए एक प्रेरणा बन सकती है जो सर्वथा अमानवीय है. आज के समय में ऐसी सस्ती बयानबाजी करनेवाले हर व्यक्ति का आम जनता द्वारा विरोध होना चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म का हो और धार्मिक पद पर स्थापित हो. 
धर्मगुरु शायद यह भूल गए हैं कि धर्म और समाज दोनों की प्रगति और रक्षा के लिए संख्या सिर्फ एक पैमाना है मानव जाति में सद्गुणों का होना उससे ज्यादा आवश्यक है. हमारी पौराणिक कथाओं में कपिल मुनि का भी जिक्र है जिन्होंने राजा सगर के साठ हज़ार पुत्रों को भष्म कर दिया था क्योंकि वे अत्याचारी और नालायक थे. इसी कहानी का अगला नायक इन्ही राजा सगर के प्रपौत्र भगीरथ थे जिनके नाम से गंगा का एक नाम भागीरथी भी है जिनके पुण्य प्रताप और अच्छे कर्मो से इस देश का कल्याण और समाज की रक्षा हो रही है. अतः धर्मगुरु संख्या में नहीं, पैदा हुए बच्चों में सद्गुणों की बात करें। 
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सरिता कुमारी