बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

निरीह प्राणियों की क़ुर्बानी से शक्ति की यह कैसी भक्ति !!

कितने उत्साह एवं हर्षोलास के साथ आज चारो तरफ लोग माँ दुर्गा की भक्ति में लीन होकर लोग उनकी आराधना में लगे हुए हैं. नौ दिन बिलकुल पवित्रता के साथ नवरात्र का पालन कर रहे हैं. प्रशासन भी उनके त्यौहार में तन-मन धन के साथ पूरा सहयोग कर रहा है. यहां तक कि प्रधानमन्त्री के आह्वान पर पूरे जोर- शोर के साथ सफाई अभियान चल रहा है. इसी बीच गांधी- जयंती के अवसर पर मांस - मछली की दूकान बंद रखने का एलान हुआ है.  गवर्नर साहब ने भी लोगों से अपील किया है कि सफाई करें तथा गन्दगी न फैलाएं। इन सब के लिए मै सबका ह्रदय से धन्यवाद करती हूँ।  

लेकिन दूसरी ओर इन सारी भक्ति भावनाओं एवं गांधी जी के सुविचारों को भूलकर माँ दुर्गा के नाम पर बेचारे बेक़सूर निरीह बकरियों एवं भैंसों की बलि चढ़ाना शुरू कर देंगे। बाद में अखबार के पन्ने बलि चढ़ानेवालों के नाम से भरे होते हैं, खासकर नेताओं के जो अपने आप को श्रेष्ठतम सिद्ध करने के लिए ऐसी घोषणा करते हैं कि फलाने मंदिर में फलाने नेता ने इतने और उतने दर्जन बकरे की बलि दी. इसी तरह कोई अन्य नेता किसी देवी विशेष पर दी गयी भैसों की बलि का ब्यौरा छपवाते हैं. यह कहाँ तक उचित है कि एक निरीह प्राणी की बलि को अपनी भक्ति का प्रमाण बनाकर समाज के सामने पेश किया जाए. अभी बकरीद भी आ गयी है और उसके नाम पर न जाने कितने तूम्बा और बकरे बेचारे की जान जायेगी। हर पर्व के मौके पर दोनों ही धर्मो के ज्ञाता अखबारों के माध्यम से यह अवश्य बताते हैं कि बलि तथा जीवों की क़ुरबानी वर्जित है. यह कैसे हो सकता है कि किसी भी धर्म का पूज्य कोई देवी देवता किसी के प्राणो की आहुति से प्रसन्न हो जाए? अतः सभी धर्मावलम्बियों से आग्रह है की धर्म और भगवान या अल्लाह के नाम पर निरीह जीवों की हत्या न करें। इसमें प्रशासन और धर्म के संरक्षकों दोनों से हम सहयोग एवं समर्थन की अपील करते हैं कि ऐसे बलिदानो को रोकने की पहल करें।                


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